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शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी का जीवन परिचय

शिवमंगल सिंह 'सुमन

शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी का जीवन परिचय : शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध कवि और शिक्षाविद थे। 5 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव में जन्मे सुमन जी ने अपनी रचनाओं से हिंदी कविता को नया आयाम दिया। 'हिल्लोल', 'प्रलयोन्मुख', 'ज्वाला', 'युगंधरा' और 'साक्षी' उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं।

वे एक उत्साही खिलाड़ी भी थे। वे क्रिकेट, फुटबॉल और हॉकी खेलने में बहुत अच्छे थे। वे प्रकृति प्रेमी थे। उन्हें प्रकृति में घूमना और उसकी सुंदरता का आनंद लेना बहुत पसंद था। उन्होंने जातिवाद, सामाजिक बुराइयों और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई।

आपको बात दें कि उन्हें उनकी रचनाओं के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

सुमन जी की रचनाओं में प्रकृति, प्रेम, देशभक्ति, मानवतावाद और सामाजिक मुद्दों जैसे विषयों का समावेश है। उनकी भाषा सरल और सहज है और उनकी रचनाओं में भावनाओं की गहराई और संवेदना है।

यह लेख आपको शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी के जीवन, रचनाओं और उनके योगदान के बारे में जानने का अवसर प्रदान करता है।

शिवमंगल सिंह सुमन का संक्षिप्त परिचय

नाम शिवमंगल सिंह सुमन
जन्म 5 अगस्त 1915
जन्मस्थान झगरपुर, उन्नाव, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 27 नवंबर 2002
मृत्युस्थान उज्जैन, मध्य प्रदेश
शिक्षा एम.ए., पी.एच.डी., डी. लिट्
पेशा कवि, शिक्षाविद्, प्रशासक
भाषा हिंदी
साहित्यिक युग छायावाद
प्रमुख रचनाएँ हिल्लोल, प्रलयोन्मुख, ज्वाला, युगंधरा, साक्षी, कुरुक्षेत्र, अग्निपथ, आत्मदान, क्षितिज, रचनावली
पुरस्कार साहित्य अकादमी पुरस्कार (2 बार), पद्मश्री, पद्मभूषण
उपाधि महामहोपाध्याय
योगदान हिंदी कविता को नया आयाम दिया, छायावाद युग के प्रमुख कवियों में से एक, उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया


जन्म और परिवार

शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी का जन्म 5 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के झगरपुर गाँव में हुआ था, शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी का परिवार एक साधारण किसान परिवार था। उनके पिता का नाम श्री रामदास सिंह और माता का नाम श्रीमती शांती देवी था। उनकी पत्नी का नाम श्रीमती शांता देवी था। उनके चार बच्चे थे - दो बेटे और दो बेटियाँ। उनके बेटों का नाम अरुण कुमार और वरुण कुमार है। उनकी बेटियों का नाम उषा और किरण है।

आपको बता दें कि उनका परिवार उज्जैन में रहता था सुमन जी एक गरीब परिवार से थे, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से अपनी शिक्षा पूरी की और एक प्रसिद्ध कवि और शिक्षाविद बन गए। उन्होंने अपने परिवार का हमेशा पूरा ध्यान रखा और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई, उनके परिवार का उनके जीवन और रचनाओं पर बहुत प्रभाव रहा।

उनकी पत्नी ने उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्हें हमेशा प्रोत्साहन दिया। उनके बच्चे भी अपने माता-पिता के आदर्शों पर चलते हैं।

शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी की शिक्षा और करियर

सुमन जी ने अपनी शिक्षा बहुत ही कठिन परिस्थितियों में प्राप्त की। वे एक मेधावी छात्र थे और उन्होंने अपनी सभी परीक्षाओं में प्रथम श्रेणी प्राप्त की।

आपको बता दें कि शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से उन्होंने एम.ए. और डी.लिट. की उपाधियाँ प्राप्त कीं इसके बाद उन्होंने ग्वालियर, इंदौर और उज्जैन में अध्यापन कार्य किया। आपको बता दें कि 1968-78 तक वे विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति भी रह चुके है।

शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी की रचनाएं

शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी ने कई प्रसिद्ध रचनाएँ लिखी है जिनमे शामिल है -

कविता संग्रह

  • हिल्लोल (1939)
  • प्रलयोन्मुख (1942)
  • ज्वाला (1945)
  • युगंधरा (1950)
  • साक्षी (1956)
  • कुरुक्षेत्र (1965)
  • अग्निपथ (1972)
  • आत्मदान (1980)
  • क्षितिज (1989)
  • रचनावली (1996)

नाटक

  • प्रलय (1946)
  • कुरुक्षेत्र (1965)

गद्य

  • आलोचना (1943)
  • निबंध (1950)
  • संस्मरण (1980)
  • पत्र (1990)

बाल साहित्य

  • बालगीत (1950)
  • बालकथा (1955)
  • बाल नाटक (1960)

अनुवाद

  • रवींद्रनाथ टैगोर की कविताएँ (1950)
  • महात्मा गांधी के विचार (1960)

सुमन जी की अन्य रचनाएँ

  • पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
  • मेरा देश जल रहा है, कोई नहीं बुझानेवाला
  • फिर व्यर्थ मिला ही क्यों जीवन जेल में
  • आती तुम्हारी याद आज देश की मिट्टी बोल उठी है
  • तब समझूँगा आया वसंत

शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी की भाषा शैली

सुमन जी की भाषा शैली सरल, सहज और प्रभावशाली है, वे सरल और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हैं, उनकी भाषा में संस्कृत के शब्दों का भी प्रयोग है, लेकिन वे इतने अधिक नहीं हैं कि भाषा बोझिल हो जाए, उनकी भाषा में विविधता है और वे विभिन्न प्रकार के विषयों पर लिखते हैं।

उनकी भाषा में भावनाओं की गहराई और संवेदना है, उनकी भाषा में कल्पनाशीलता और चित्रात्मकता है। उनकी भाषा सरल और सहज है। वे सरल और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हैं। उनकी भाषा का प्रवाह सरल और सहज है। वे बिना किसी रुकावट के लिखते हैं। उनकी भाषा स्पष्ट और बोधगम्य है। वे अपनी बात को स्पष्ट रूप से व्यक्त करते हैं।

शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी का हिंदी साहित्य में योगदान और स्थान

सुमन जी हिंदी साहित्य के एक महान स्तंभ थे। उन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी कविता को नया आयाम दिया। वे हिंदी साहित्य के छायावाद युग के प्रमुख कवियों में से एक थे। उन्होंने प्रकृति, प्रेम, देशभक्ति, मानवतावाद और सामाजिक मुद्दों जैसे विषयों पर लिखा।

उनकी भाषा सरल और सहज है और उनकी रचनाओं में भावनाओं की गहराई और संवेदना है। उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है और वे आज भी लोकप्रिय हैं।

सुमन जी का हिंदी साहित्य में योगदान

छायावाद युग के प्रमुख कवि: सुमन जी हिंदी साहित्य के छायावाद युग के प्रमुख कवियों में से एक थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में छायावाद की विशेषताओं को उजागर किया।

नई भाषा शैली: सुमन जी ने हिंदी कविता में नई भाषा शैली का प्रयोग किया। उनकी भाषा सरल और सहज है, और उनकी रचनाओं में भावनाओं की गहराई और संवेदना है।

विविध विषयों पर रचना: सुमन जी ने प्रकृति, प्रेम, देशभक्ति, मानवतावाद, और सामाजिक मुद्दों जैसे विषयों पर लिखा। उनकी रचनाओं में जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण है।

सुमन जी की रचनाओं ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। उनकी रचनाएँ आज भी लोकप्रिय हैं और लोगों को प्रेरित करती हैं। आपको बता दें कि सुमन जी का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। वे हिंदी कविता के इतिहास में एक महत्वपूर्ण नाम हैं।

शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी को मिले पुरस्कार, उपाधि और सम्मान

1956 साहित्य अकादमी पुरस्कार (कुरुक्षेत्र)
1974 साहित्य अकादमी पुरस्कार (मिट्टी की बारात)
1974 पद्मश्री
1987 मैथिलीशरण गुप्त सम्मान
1999 पद्मभूषण
1971 'महामहोपाध्याय' की उपाधि
1968 विक्रम विश्वविद्यालय का कुलपति
1971 उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का उपाध्यक्ष
1977-78 भारतीय विश्वविद्यालय संघ का अध्यक्ष
1984 'विश्व हिंदी सम्मेलन', लंदन में भारत का प्रतिनिधित्व

इनके अलावा भी सुमन जी को अनेक पुरस्कार, उपाधि और सम्मान मिले। वे हिंदी कविता के इतिहास में एक महत्वपूर्ण नाम हैं।

शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी का निधन

शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी का निधन 27 नवंबर 2002 को उज्जैन, मध्य प्रदेश में हुआ था। सुमन जी का निधन हिंदी साहित्य के लिए एक बड़ी क्षति थी।

उनकी मृत्यु के बाद, भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री ने कहा, "डॉ. शिव मंगल सिंह 'सुमन' केवल हिंदी कविता के क्षेत्र में एक शक्तिशाली चिह्न ही नहीं थे, बल्कि वह अपने समय की सामूहिक चेतना के संरक्षक भी थे। उन्होंने न केवल अपनी भावनाओं का दर्द व्यक्त किया, बल्कि युग के मुद्दों पर भी निर्भीक रचनात्मक टिप्पणी भी की थी।"

निष्कर्ष

यदि आपके पास इस विषय से संबंधित कोई प्रतिक्रिया, सुझाव या प्रश्न है तो कृपया नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी राय साझा करें।

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FAQs

शिवमंगल सिंह सुमन जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर: 5 अगस्त 1915, झगरपुर, उन्नाव, उत्तर प्रदेश

शिवमंगल सिंह सुमन जी का निधन कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर: 27 नवंबर 2002, उज्जैन, मध्य प्रदेश

शिवमंगल सिंह सुमन जी को हिंदी साहित्य में किस युग से जोड़ा जाता है?

उत्तर: छायावाद युग

शिवमंगल सिंह सुमन जी को कौन सी उपाधि दी गई थी?

उत्तर: महामहोपाध्याय

शिवमंगल सिंह सुमन जी को कौन से पुरस्कार मिले?

उत्तर: साहित्य अकादमी पुरस्कार (2 बार), पद्मश्री, पद्मभूषण

शिवमंगल सिंह सुमन जी की प्रमुख रचनाएँ कौन सी हैं?

उत्तर: हिल्लोल, प्रलयोन्मुख, ज्वाला, युगंधरा, साक्षी, कुरुक्षेत्र, अग्निपथ, आत्मदान, क्षितिज, रचनावली

शिवमंगल सिंह सुमन जी की भाषा शैली की विशेषताएं क्या हैं?

उत्तर: सरल, सहज, प्रभावशाली, विविधतापूर्ण, भावनाओं की गहराई, कल्पनाशीलता

शिवमंगल सिंह सुमन जी ने किन विषयों पर लिखा?

उत्तर: प्रकृति, प्रेम, देशभक्ति, मानवतावाद, सामाजिक मुद्दे

शिवमंगल सिंह सुमन जी का हिंदी साहित्य में क्या योगदान है?

उत्तर: उन्होंने हिंदी कविता को नया आयाम दिया, छायावाद युग के प्रमुख कवियों में से एक थे, उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया

शिवमंगल सिंह सुमन जी की रचनाओं की कुछ विशेषताएं क्या हैं?

उत्तर: सरल भाषा, भावनाओं की गहराई, कल्पनाशीलता, चित्रात्मकता, सामाजिक मुद्दों पर टिप्पणी।

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